उत्तर प्रदेश के विविधतापूर्ण शिल्प के क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की डिज़ाइन की अत्यधिक मांग रहती है। शिल्प के व्यापक विकास के लिए यू पी आई डी द्वारा इस क्षेत्र में कई स्वरूपों में हितधारकों के साथ तालमेल बनाना आवश्यक होगा। संस्थान हितधारको के अलग- अलग क्षेत्रों की जरूरतों को पहचान कर उसके अनुसार आगे के कार्यक्रमों को बनाएगा।
पाठ्यक्रम 1 : कैड पैटर्न मेकिंग
समयावधि : 3 माह
पाठ्यक्रम 2 : क्राफ्ट डिज़ाइन डेवलपमेंट
समयावधि : 1 वर्ष
इस सर्टिफिकेट कार्यक्रम के माध्यम से प्राप्त कौशल, ज्ञान, डिजाइन और व्यवसाय सम्बंधित ज्ञान द्वारा तमाम हितधारकों को एक मंच पर लाया जा सकता है। अतः यू.पी.आई.डी. के लिए यह आवश्यक है कि इस तरह की गतिविधियों पर ध्यान दें और हस्तशिल्प क्षेत्र के विकास के लिए महत्त्वाकांक्षी योजना बनाएं। इसलिए यह आवश्यक है कि सेमिनारों और कार्यशालाओं के विषयों को अनुसन्धान और खोज द्वारा विकसित किया जाए।
सर्टिफिकेट कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं :
- प्रासंगिक व्यावसायिक जानकारी को एकत्र करके बड़ी संख्या में लोगों तक शीघ्रता और आसानी से उपलब्ध कराना।
- सर्टिफिकेट कार्यक्रम के प्रभाग ऐसे होने चाहिए जो शिल्पकारों और अन्य इच्छुक व्यक्तियों को इतना सशक्त बनाए कि वे प्रदेश के शिल्प क्षेत्र को सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक विकास के रूप से विकसित कर सकें।
- डिजाइन, प्रबंधन, उद्यमशीलता आदि में मूल दक्षताओं का विकास करके शिल्प क्षेत्र को विकसित करना।
- उचित अनुभव व अनावरण द्वारा विशिष्ट शिल्प के कौशल को बढ़ावा देना।
- शिल्पकारों को डिजाइन और नवीनीकरण द्वारा अपने उत्पाद को बेहतर और विविध बनाने के लिए सशक्त करना।
- सामग्री के उपयोग और प्रबंधन प्रक्रिया की नई तकनीक से अवगत कराना, जिससे हस्तशिल्प कार्य में सुधार आ सके।
- शिल्प और इसके विपणन के सभी पहलुओं में डिजाइनिंग की अवधारणा को प्रोत्साहित करना।
- विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को एक स्थान पर एकत्र करके नई और विविध प्रकार की सूचनाएं उपलब्ध कराना ताकि वैश्वीकरण की चुनौतियों का सामना किया जा सके।
- विशेषज्ञों, संस्थानों, गैर सरकारी संगठनों एवं सम्बंधित लोगों के बीच संवाद बनाना, जिससे उत्तर प्रदेश में शिल्प के विकास का माहौल बन सके।
- प्रत्येक कार्यशाला के बाद कार्यक्रमों और सम्बंधित गतिविधियों को बढ़ावा देना ताकि नये उत्पाद का प्रदर्शन हो सके।
सर्टिफिकेट कार्यक्रम की संरचना इस प्रकार की होगी कि कम समय में गुणवत्ता और प्रायोगिक ज्ञान प्राप्त हो सके। यह कार्यक्रम यू.पी.आई.डी की अध्यक्षता एवं निगरानी में बनाया एवं संचालित किया जाएगा। यह अपेक्षा की जाती है कि इन निविष्टियों से सौंदर्य, उपयोगिता तथा व्यापार के दृष्टिकोण से शिल्प की गुणवत्ता और सांस्कृतिक अनुभव बेहतर होंगे। प्रतिभागियों द्वारा यहाँ बिताए गए समय में प्रशिक्षण और सहभागी गतिविधियों द्वारा शिल्प की डिजाइन बेहतर बनाने की जानकारी प्राप्त होगी और इसके अलावा, उद्यमशीलता की आधुनिक तकनीकों, विपणन के तरीकों आदि पर भी ज्ञान प्राप्त करेंगे। प्रेजेंटेशन, केस स्टडी और समूहिक वार्ता (ग्रुप डिस्कशन) से यह किया जा सकता है। उद्देश्य यह होना चाहिए कि इस वर्कशॉप से वे अपना कौशल बेहतर बना सकें और उसे व्यापार योग्य बना सकें।
निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है:
- प्रारंभिक दो वर्षों तक सेमिनारों और कार्यशालाओं के विषयों को इस प्रकार विकसित किया जाना चाहिए जो विशेष शिल्प के पूरे क्षेत्र के लिए हो। सर्टिफिकेट कार्यक्रम की सफलता और मांग के उपरान्त अन्य विषय बाद में जोड़े जा सकते हैं।
- सर्टिफिकेट कार्यक्रम को कैंपस की सुविधाओं का प्रयोग करना चाहिए और यदि कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है तो उसे अन्य तरीके से गठित किया जा सकता है।
- सर्टिफिकेट कार्यक्रम यू.पी.आई.डी. की बाह्य गतिविधियों का समर्थन करेगा, इससे शिल्पकारों और संस्थान को शिल्प समूहों में नियमित कार्यशालाएं आयोजित करने में मदद एवं बढ़ावा मिलेगा।
- कार्यशाला और प्रशिक्षण कार्यक्रम द्वारा डिजाइन उद्यमियों और हस्तकला कारीगरों को ऐसे अवसर मिलने चाहियें जिससे उनको व्यवसाय के अवसर प्राप्त हों। उद्यमियों का मार्गदर्शन करने के लिए यू.पी.आई.डी. के इनक्यूबेटर योग्य पाए गए सुझावों को आगे बढ़ाया जा सकता है।
- कुछ प्रशिक्षण कार्यक्रमों में समय समय पर संशोधन करके उन्हें इस प्रकार बनाना होगा की वह समूहों, व्यक्तियों और संस्थानों की जरुरत के अनुसार है।
- कार्यशालाओं के विचारों और अवधारणाएं इस प्रकार की हों की विभिन्न हस्तशिल्प समुदायों के बीच सामंजस्य स्थापित हो, जिससे उन सबको आर्थिक लाभ मिले और नए उत्पाद और नयी बाजार विकसित करने में बढ़ावा मिल सके।
- प्रत्येक कार्यशाला में ऐसा तंत्र होना चाहिए जिससे अंत में वास्तविक उपयोगिता प्राप्त हो। परिणाम से ही कार्यक्रम की गुणवत्ता प्रमाणित होगी। ये तंत्र लचीला होना चाहिए जिसमे आलोचना और प्रतिक्रिया के आधार पर संशोधन किये जा सकें। इससे यह सन्देश जायेगा कि यू.पी.आई.डी. शिल्प कारीगरों की गुणवत्ता बढ़ाने, नवीनता, और डिजाईन संवेदनशीलता के लिए प्रतिबद्ध है।
- कुछ सर्टिफिकेट कार्यक्रमों में `डिजाईन क्लीनिक’ का प्राविधान होता है, जो खास समस्याओं का समाधान करती है। यह मुख्यता उन कार्यशालाओं में अधिक उपयोगी होती हैं जो बाहर आयोजित की जाती हैं।
- जहाँ तक संभव हो सर्टिफिकेट कार्यक्रम को पाठ्यक्रम और शिक्षा पद्धति में एकीकृत किया जायेगा। बाह्य संपर्क यू.पी.आई.डी. की रणनीति का हिस्सा होना चाहिए जिसके अंतर्गत उद्यमिता और डिजाइन सोच के द्वारा सांस्कृतिक उद्योगों का विकास हो सके।
- प्रत्येक शिल्पकला और उसकी समस्या अपने आप में अनोखी होती है। कच्चे माल, उत्पादन, मानव कारक, आर्थिक, तकनीक, गुणवत्ता, वितरण आदि मुद्दों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम होंगे। इस प्रकार ही कार्यशाला को सफलतापूर्वक आयोजित करने के लिए सभी बाह्य एजेंसी और व्यक्तियों के साथ सामंजस्य आवश्यक होगा। इस प्रकार के नेटवर्क की योजना और परिचालन पहले से ही होगा।
- वे सभी कार्यशालाएं जिनमे मशीन और औजारों का उपयोग है, उनमे अधिकतम 20 प्रतिभागी होंगे, जिससे इन पर अधिकतम ध्यान दिया जा सके।
- शिक्षण का मुख्य माध्यम हिंदी होगा।
- यह प्रस्तावित है कि प्रारंभिक सालों में यू.पी.आई.डी. 1-2 सर्टिफिकेट कार्यक्रम प्रति 3 माह पर आयोजित करेगा और आगे चलकर यह संख्या बढ़ाई जा सकती है।
- कार्यशाला की अवधि 1 से 6 सप्ताह होगी। सेमिनारों की अवधि 2-3 दिन हो सकती है।
सभी इच्छुक व्यक्ति सर्टिफिकेट कार्यक्रम में प्रवेश ले सकेंगे। कुछ विशेष मामलों में विषय और शिक्षण सामग्री के कारण आयु सीमा हो सकती है लेकिन ऐसी सूचना पहले से ही दी जाएगी। ऐसी किसी भी पात्रता के बारे में विषय विशेषज्ञ तथा कार्यशाला संकाय से परामर्श किया जाएगा।
शुरुआत में प्रेस विज्ञापन के माध्यम से शिल्प कारीगरों के आवेदन आमंत्रित किए जाएंगे। सर्टिफिकेट कार्यक्रम की निर्भरता प्रदेश सरकार अथवा किसी अन्य सरकारी या गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा शिल्प कारीगरों के नामांकन पर भी हो सकती है।
आज पारंपरिक शिल्पकार कई चुनौतियों का सामना कर रहें हैं, जिसमे बाजार, बदलती अर्थव्यस्था, उत्पाद विकास आदि को प्रमुखता पर रखा गया है। यहाँ समग्र और विशिष्ट समाधान की आवश्यकता है। सर्टिफिकेट कार्यक्रम यह प्रयास करेगा कि सीमित साधनों में अधिक उत्पादन किया जा सके।
कार्यक्रमों की सामग्री का सृजन शिल्प, शिल्प कारीगरों, व्यापार और समाज की आवश्यकताओं पर गौर करने एवं विशेषज्ञों द्वारा सलाह के बाद ही होगा। डिजाइनिंग पाठ्यक्रम बनाते समय प्रतिभागियों की विभिन्नता को ध्यान में रखकर ही सर्टिफिकेट कार्यक्रम को बनाया जायेगा। कार्यशालाएं प्रतिभागियों को सीखने के अवसर के साथ प्रायोगिक अनुभव भी देंगे। हमारा प्रयोजन सिद्धांतो को सीखने के बजाये `वास्तविक काम कर के सीखने’ पर अधिक होना चाहिए।
प्रत्येक कार्यशाला में कम से कम एक संकाय विशेषज्ञ और एक हस्तशिल्प कारीगर होगा जो प्रतिभागियों को दिए गये इनपुट्स को बताने में समर्थ हो। सामूहिक प्रोजेक्ट द्वारा सहयोगियों से सीखने को बढ़ावा दिया जाएगा। प्रतिभागियों में सांस्कृतिक आदान प्रदान को भी बढ़ावा दिया जायेगा तथा प्रश्न-उत्तर और प्रतिकिया के माध्यम से रचनात्मक और उद्यमशीलता को बढ़ावा दिया जायेगा।
कार्यक्रमों में नवीनतम मल्टीमीडिया तकनीक के उपयोग को प्रोत्साहित किया जायेगा। अन्वेषण, प्रयोग, प्रस्तुतियां, चर्चा, राय और प्रलेखन प्रत्येक कार्यशाला का अहम हिस्सा होगा। प्रतिभागियों द्वारा किये गए कार्यों को सार्वजनिक प्रदर्शनी के रूप में दिखाया जाना अनिवार्य होगा ताकि यू.पी.आई.डी द्वारा प्रमाण पत्र पाने के हकदार हो सकें।
परिसर और बाहर होने वाली कार्यशालाओं को ऐसे प्रस्तुत किया जायेगा कि उनमे अधिक से अधिक शिल्प और अन्य प्रतिभागी शामिल हो सकें। कार्यशालाओं के कुछ विषय शिल्प और शिल्प शैली की आवश्यकता के अनुसार होंगे, बाकी इस प्रकार के होने चाहिए जो व्यापक और सामान्य जरुरत को पूरा कर सकें। प्रत्येक विषय और उसके पाठ्यक्रम को पहले से ही ध्यान में रखकर तैयार किया जायेगा जिसका यू.पी.आई.डी को नियमित रूप से आंकलन करना चाहिए। आदानो (इनपुट्स) को हस्तशिल्प के क्षेत्र में आने वाली जरूरतों को ध्यान में रखकर योजनाबद्ध किया जाना चाहिए।
सर्टिफिकेट कोर्स से आने वाले अनुमानित परिणाम नीचे दिए गए हैं:-
- शिल्प क्षेत्र से सम्बंधित डिजाइन मुद्दों को समझना,
- शिल्प उत्पाद के विकास के लिए नया कौशल प्राप्त करना,
- शिल्प उत्पाद के गुणवत्ता मानकों का निर्धारण,
- वस्तु एवं प्रक्रिया की बेहतर समझ,
- उन्नयन की जरुरत को समझना,
- डिजाइन अवधारणा को अभ्यास से जोड़ने को क्षमता,
- उपकरण और सामग्री की बेहतर देखरेख करना,
- नई प्रौद्योगिकी को अपनाना,
- नए अविष्कार करने की क्षमता,
- शिल्प क्षेत्र में डिजाइन के नए रोल को समझना,
- उत्तर प्रदेश में शिल्प क्षेत्र से सम्बंधित समस्या को बेहतर तरीके से समझना,
- डिजाइन के माध्यम से उत्तर प्रदेश में शिल्प के मुद्दों का समाधान।
कार्यशाला के पाठ्यक्रम एवं उसके वर्धन के विकास पर योजनाबद्ध तरीके से पूरा ध्यान दिया जाएगा और उसके शैक्षिक गुणवत्ता के मानकों पर भी ध्यान दिया जाएगा। योजना को क्षेत्र की समझ और प्रतिभागियों की आकांक्षाओं के अनुसार होनी चाहिए। कार्यशाला को आधुनिक जानकारियां, व्याहारिक अनुभव प्रदान करना चाहिए जो बाजार के रुझान को समझाने में मदद कर सके। यह तभी संभव हो सकता है जब पेशेवर डिज़ाइनर और अनुभवी लोग इसमें सक्रिय भागीदारी करें। कार्यक्रम को नई डिजाइन और नवीनता को बढ़ा कर नये मानक बनाने होंगे, जिससे कार्यशाला के अंत में प्रतिभागी अपनी सीख को व्याहारिक और रचनात्मक कार्यों में लगा सकें। शैक्षणिक दृष्टिकोण उन मनको और कार्यक्रमों को पूरा करेगा जो अन्य संस्थाओं द्वारा दिए जा रहे हैं, जैसे एन.आई.डी., आई.आई.सी.डी, सी.डी.आई. आदि। वे लोगों के साथ गुणवत्ता के नये मानक व नये बेंचमार्क बनाने में समर्थ रहे हैं। यू.पी.आई.डी. के लिए यह उपयुक्त होगा कि वह ऐसे उपलब्ध मॉडल्स से सीखे।
ऐसा प्रस्तावित किया जाता है कि सर्टिफिकेट कार्यक्रम में कोई औपचारिक परीक्षा व्यवस्था नहीं होगी इसके स्थान पर प्रतिभागी अपने काम का प्रदर्शन करेंगे और सार्वजनिक प्रस्तुति बनाएँगे। इस सत्र के अंत में एक योजना बनाई जानी चाहिए जहाँ डिजाइनर/ डिजाइन शिक्षकों और विशेषज्ञों द्वारा अपनी प्रतिक्रिया दी जा सके। यह एक खुले सत्र के रूप में आयोजित किया जाना चाहिए, जहां सभी प्रतिभागियों को उत्साहित किया जाना चाहिए कि वह दूसरों के कार्यो की समीक्षा कर सकें। वह सभी प्रतिभागी जिन्होंने प्रस्तुति की है और 80 प्रतिशत कार्यशाला में भाग लिया है उन्हें सहभागिता का प्रमाणपत्र (सर्टिफिकेट ऑफ़ पार्टिसिपेशन) दिया जाएगा, जिसमे कार्यशाला का शीर्षक दिन और तारीख अंकित होगी।